कृत्रिम वृक्क क्या है ? यह कैसे कार्य करती है?
उत्तर-विशेष परिस्थिति जैसे संक्रमण, मधुमेह, सामान्य से अधिक उच्च रक्तचाप या किसी प्रकार के चोट के कारण वृक्क क्क क्षतिग्रस्त होकर अपना कार्य करना बन्द कर देते हैं। क्षतिग्रस्त वृक्क के कार्य न करने की स्थिति में शरीर में आवश्यकता से अधिक मात्रा में जल, खनिज या यूरिया जैसे जहरीले विकार एकत्रित होने लगते हैं जिससे रोगी की मृत्यु हो सकती है। ऐसी स्थिति में वृक्क का कार्य अतिविकसित मशीन के इस्तेमाल से सम्पादित कराया जाता है। इसे डायलिसिस मशीन या कृत्रिम वृक्क कहते हैं। यह मशीन वृक्क की तरह ही कार्य करता है। इस मशीन में एक टंकी होता है जो डायलाइजर कहलाता है। इसमें डायलिसिस फ्लूयूइड नामक तरल पदार्थ भरा होता है। इस तरल पदार्थ में सेलोफेन से बनी एक बेलनाकार रचना लटकती रहती है। यह आशिक रूप से पारगम्य होता है। यह केवल विलय का ही विसरण होने देता है। डायलिसिस फ्लूइड की सान्द्रता सामान्य ऊत्तक द्रव जैसी होती है। परंतु, इसमें नाइट्रोजनी विकार तथा लवण की अत्यधिक मात्रा नहीं होती है। डायलिसिस के समय रोगी के शरीर का रक्त एक धमनी के द्वारा निकालकर उसे 0°C तक ठंडा किया जाता है। इस रक्त को विशिष्ट प्रतिस्पंदक से उपचारित कर तरल अवस्था में ही रखा जाता है। इस रक्त को एक पम्प की सहायता से डायलाइजर में भेजा जाता है। यहाँ रक्त से नाइट्रोजनी विकार विसरित होकर डायलिसिस फ्लूइड में चला जाता है। इस तरह शुद्ध किये गये रक्त के पुनः शरीर के तापक्रम पर लाया जाता है। पुनः इस रक्त को पम्प की मदद से एक शिरा के द्वारा रोगी के शरीर में वापस पहुँचा दिया जाता है। रक्त के शुद्धिकरण की यह क्रिया हिमोडायलिसिस कहलाता है। रक्त के शुद्धिकरण का यह एक विकसित तकनीक है।