वन्य समाज का सामाजिक जीवन कैसा था?
उत्तर : वन्य समाज (आदिवासी) के लोग सीधे-सादे और सरल प्रकृति के थे। आमतौर पर वे स्वयं को शेष समाज से अलग रखते थे। इनके जीवन की प्रायः सभी आवश्यकताएँ वनों से ही पूरी हो जाती थीं। खाने के लिए वनों से कन्द-मूल, फल और अपने द्वारा उपजाए गए अनाज से इनके भोजन की आवश्यकताएँ पूरी हो जाती थीं। ईंधन, लकड़ी, घरेलू सामग्री, जड़ी-बूटी, औषधियाँ, पशुओं के लिए चारा और कृषि औजारों की सामग्री उन्हें वनों से हो प्राप्त हो जाती थीं। अतः इनका सामाजिक जीवन पूर्णतः व्यवस्थित था। जंगल के फूल-पत्तों से ही लड़के-लड़कियाँ अपना श्रृंगार करते थे। वन्य समाज की महिलाएँ अपने समाज में पूर्णरूपेण स्वच्छन्द थीं और जीविकोपार्जन में परुषों का हाथ बँटाती थीं। उनका शौक और मनोरंजन का साधन पशु-पक्षियों का शिकार करना था। नाच और गाना इनका महत्त्वपूर्ण शौक था। सरहुल इनका सबसे महत्त्वपूर्ण पर्व था। परन्तु औपनिवेशिक शासनकाल से इनके सामाजिक जीवन में बदलाव आने लगा। अंग्रेजों ने उनके सामाजिक जीवन में हस्तक्षेप किया। अपने आर्थिक लाभ के लिए अंग्रेजों ने कबीले के सरदारों को जमींदार का दर्जा दे दिया। वन्य समाज के अन्दर ईसाई मिशनरियों के घुसपैठ को बढ़ावा दिया गया। फलस्वरूप उनकी सामाजिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गयी।