पौधों में उत्सर्जन कैसे होता है ?
उत्तर- जंतुओं की तुलना में पौधों में उत्सर्जन के लिए विशिष्ट अंग नहीं पाए जाते हैं। इनमें उत्सर्जन के लिए विभिन्न तरीके अपनाए जाते हैं। श्वसन क्रिया से निष्कासित कार्बन डाइऑक्साइड गैस एवं प्रकाशसंश्लेषण से निष्कासित ऑक्सीजन गैस विसरण क्रिया द्वारा पत्तियों के रंध्रों एवं अन्य भागों में अवस्थित वातरंध्रों के द्वारा उत्सर्जित होती है। वाष्पोत्सर्जन से निकलनेवाला जल मुख्यतः रंध्रों द्वारा तथा पौधों के अन्य भागों से निष्कासित होता रहता है।
बहुत-से पौधे कार्बनिक अपशिष्टों या उत्सर्जी पदार्थों को उत्पन्न करते हैं जो उनकी मृत कोशिकाओं, जैसे अंतःकाष्ठ में संचयित रहते हैं। पौधे उत्सर्जी पदार्थों को अपनी पत्तियों एवं छाल में भी संचित करते हैं। पत्तियों के गिरने एवं छाल के बिलगाव से इन उत्सर्जी पदार्थों का शरीर से निष्कासन होता है। कुछ उत्सर्जी पदार्थ कोशिकीय रिक्तिकाओं में जमा रहते हैं। विभिन्न चयापचयी क्रियाओं के दौरान टैनिन (tannin), रेजिन (resin), गोंद (gums) आदि उत्सर्जी पदार्थों का निर्माण होता है। टैनिन वृक्षों के छाल में, रेजिन एवं गोंद पुराने जाइलम में संचित रहता है।
कुछ पौधों में उत्सर्जी पदार्थ गाढ़े, दुधिया तरल के रूप में संचित रहता है जिसे लैटेक्स कहते हैं। अगर आप पीपल, बरगद या पीला कनेर की एक ताजी पत्ती को तोड़ें तो आपको उजला, दूधिया एवं गाढ़ा लैटेक्स निकलता दिखाई पड़ेगा।
बबूल के पौधों में गोंद उत्सर्जी पदार्थ के रूप में पाया जाता है। इसी प्रकार, चीड़ (Pines) में रेजिन एक सामान्य उत्सर्जी पदार्थ है।
जलीय पौधे उत्सर्जी पदार्थों को विसरण द्वारा सीधे जल में निष्कासित करते हैं जबकि स्थलीय पौधे कुछ उत्सर्जी पदार्थों को अपने आसपास की मृदा में निष्कासित करते हैं।