बिहार की कृषि "मानसून के साथ जुआ" कहा जाता है, कैसे?
उत्तर : बिहार की कृषि मानसून पर निर्भर है, बाढ़ और सुखाड़ यहाँ की नियति है, फिर भी सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है। यहाँ सर्कल कृषि की गई भूमि के मात्र 46 प्रतिशत पर ही सिंचाई हो पाती है, शेष भाग सिंचाई से वंचित रह जाता है।
यद्यपि बिहार में जल का विशाल भण्डार है। बिहार में जल संसाधन का उपयोग मुख्य रूप से सिंचाई में होता है। यहाँ कुल सिंचित भूमि का 40.63 प्रतिशत भाग नहरों द्वारा सिंचित होता है। कुओं से सिंचाई का काम केवल 2 प्रतिशत होता है। तालाबों से 9 प्रतिशत सिंचाई होती है। परन्तु इन साधनों से - सिंचाई पर्याप्त नहीं है। अतः किसानों को कृषि के लिए वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है। मानसून से वर्षा की अवधि मात्र चार महीने की होती है। इसके अलावा अनियमित और असमान वर्षा भी होती है। यहाँ कुछ फसलें शीत ऋतु में होती है और मौसम शुष्क रहता है। गन्ना, आलू, प्याज आदि की खेती में समय पर पानी देने की आवश्यता होती है। मानूसनी वर्षा की अनियमितता के कारण कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि का शिकार होना पड़ता है। कभी-कभी अतिवृष्टि के कारण बिहार की नदियों में भयंकर बाढ़ आ जाती है जिससे फसल नष्ट हो जाते हैं। कभी-कभी अनावृष्टि के कारण सुखाड़ पड़ जाता है जिससे फसलें बर्बाद हो जाती हैं। जिस वर्ष मानसून समय पर और पर्याप्त पानी देता है, उस वर्ष फसल अच्छी होती है। जिस वर्ष मानसेन साथ नहीं देता है, उस वर्ष फसल अच्छी नहीं होती है। उस वर्ष किसान को निराश होना पड़ता है। इसीलिए बिहार की कृषि को मानसून के साथ जुआ कहा गया है।