भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण का प्रभाव:–

Gyanendra Singh
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 उत्तर: आज वैश्वीकरण के युग में भारतीय कृषि भी वैश्वीकरण के प्रभाव से अछूता नहीं है। भारतीय कृषि पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ा। है । भारतीय कृषि अब निर्वाह स्वरूप छोड़कर व्यापारिक बन गयी है। इसके पीछे विश्व व्यापार प्रवृत्ति तथा मूल्य व्यवस्था की प्रेरक शक्ति काम कर रही है। आज हम मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए रासायनिक तथा जैविक खादों का इस्तेमाल कर रहे हैं। शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई की जाने लगी है । छोटे किसान गाँव छोड़कर रोजगार के लिए नगरों में जा रहे हैं। कृषि का उत्पादन लगभग तीन गुना हो गया है । कृषि के कच्चे माल से उद्योग विकसित हो रहे हैं, जिससे देश का विकास हो रहा है ।

          कृषि को निर्वाह की अवस्था से हटाकर एक आत्म निर्भर और प्रगतिशील उद्योग बनाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाये हैं। बिहार सरकार ने कृषि के विकास के लिए एक नया कृषि रोड मैप तैयार किया है तथा सरकार इसी आधार पर कार्य कर रही है । बिहार में दूसरी हरित क्रांति का नारा दिया जा रहा है, ताकि पैदावर बढ़ायी जा सके और किसान खुशहाल बन सकें । बिहार में कृषि क्षेत्र में हो रहे विकास की हर जगह प्रशंसा की जा रही है। चकबन्दी के द्वारा दूर-दूर बिखरे खेतों को बड़ी जोतों में बदला जा रहा है तथा सहकारिता को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। सिंचाई सुविधाओं में काफी प्रगति हुई तथा खेती के कामों के लिए पर्याप्त मात्रा में बिजली दी जा रही है ।

       भारत अब विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धा में ठहरने के लिए अपनी विशाल कृषि क्षमता का सही और योजनाबद्ध तरीकों से उपयोग कर रहा है। कुछ ऐसी तकनीकों का विकास किया जा रहा है, जिन्हें विकसित देश अपना रहे हैं । जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग इस संदर्भ में एक आदर्श कदम है । किसानों के ऋण सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है, ताकि वे उन्नत तकनीक का प्रयोग कर सकें । इस प्रकार, भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण का व्यापक प्रभाव पड़ा है, जिससे हम खाद्यान्न के मामले में आत्म निर्भर बन चुके हैं ।

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