सन् 1848 ई० की क्रांति :

Gyanendra Singh
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 सन् 1848 ई० की क्रांति :

    लुई फिलिप एक उदारवादी शासक था, परन्तु बहुत अधिक महत्वाकांक्षी था। उसने अपने विरोधियों को खुश करने के लिए 'स्वर्णिम मध्यमवर्गीय नीति' का अवलम्बन करते हुए सन् 1840 में गीजो को प्रधानमंत्री नियुक्त किया, जो कट्टर प्रतिक्रियावादी था। वह किसी भी तरह के वैधानिक, सामाजिक एवं आर्थिक सुधारों के विरुद्ध था। लुई फिलिप ने पूँजीपति वर्ग को साथ रखना पसन्द किया जिसे शासन के कार्यों में अभिरुचि नहीं थी और जो अल्पमत में भी था। उसके पास किसी भी तरह का सुधारात्मक कार्यक्रम नहीं था और न ही उसे विदेश नीति में ही किसी तरह की सफलता हासिल हो रहो थी। उसके शासन काल में देश में भुखमरी एवं बेरोजगारी, व्याप्त होने लगी, जिसकी वजह से गीजी की आलोचना होने लगी। सुधारवादियों ने 22 फरवरी 1848 ई० को पेरिस में थियर्स के नेतृत्व में एक विशाल भोज का आयोजन किया। जगह-जगह अवरोध लगाए गए और लुई फिलिप को गद्दी छोड़ने पर मजबूर किया गया। 24 फरवरी को लुई फिलिप ने गद्दी का त्याग किया, और इंग्लैंड चला गया। तत्पश्चात् नेशनल एसेम्बली ने गणतंत्र की घोषणा करते हुए 21 वर्ष से ऊपर के सभी वयस्क पुरुषों को मताधिकार प्रदान किया और काम के अधिकार की गारंटी दी। गणतंत्रवादियों का नेता लामार्टिन एवं सुधारवादियों का नेता लुई ब्लॉ था। शीघ्र ही दोनों में मतभेद आरम्भ हो गया और लुई नेपोलियन-फ्रांस का सम्राट बना।

        इस क्रांति ने न सिर्फ फ्रांस की पुरातन व्यवस्था का अंत किया बल्कि इटली, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हालैंड, स्वीट्जरलैंड, डेनमार्क, स्पेन, पोलैंड, आयरलैंड तथा इंग्लैंड भी इस क्रांति से प्रभावित हुए । इटली तथा जर्मनी के उदारवादियों ने बढ़ते हुए जन असंतोष का फायदा उठाया और राष्ट्रीय एकीकरण के द्वारा राष्ट्र राज्य की स्थापना की मांगों को आगे बढ़ाया, जो संवैधानिक लोकतंत्र के सिद्धांत पर आधारित था।

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