भौगोलिक खोजें:

Satyam yadav
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 भौगोलिक खोजें:

विश्व इतिहास की युगांतकारी घटनाओं में समुद्री यात्राओं एवं भौगोलिक खोजों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। आधुनिक युग के आरम्भ होने में जिन घटनाओं का निर्णायक योगदान रहा है, उनमें यह खोजें भी शामिल हैं। इनकी पृष्ठभूमि उस वैज्ञानिक प्रगति और आर्थिक विकास, विशेषकर व्यापारिक परिवर्तनों के द्वारा रची गई जो मध्ययुग के अंतिम चरण से ही आरम्भ हो गई थीं। इस कार्य में यूरोप के देशों ने अग्रणी भूमिका निभाई और यही कारण था कि आधुनिक युग में यूरोप का वर्चस्व समस्त विश्व में स्थापित हो गया। यह बात और है कि भौगोलिक खोजों का प्रारम्भ करने वाले देश स्पेन एवं पुत्र्तगाल इस प्रतिस्पर्द्धा में धीरे-धीरे पिछड़ते चले गए और नये देशों जैसे- इंग्लैंड, हॉलैंड, फ्रांस तत्पश्चात् जर्मनी को इस दिशा में अधिक सफलता मिली।

हम जानते हैं कि विश्व की प्रारम्भिक सभ्यताओं के काल से ही व्यापार एवं वाणिज्य परस्पर सम्पर्क का कारण रहा है। यह व्यापार मुख्यतः एक निश्चित मार्ग के माध्यम से होता था। प्राचीन एवं मध्यकाल में भी यूरोप एवं एशिया के मध्य प्रायः इन्हीं मार्गों का प्रयोग किया जाता था। परन्तु विश्व के कई ऐसे क्षेत्र थे, जिनमें जन-जीवन तो विद्यमान था लेकिन शेष विश्व से उनका जुड़ाव नहीं था, जैसे- अमेरिका, अफ्रिका, आस्ट्रेलिया तथा एशिया के अन्य हिस्से आदि। यद्यपि 13 वीं शताब्दी में भारत होकर चीन तक की यात्रा विवरणों ने यूरोपियनों को दक्षिण-पूर्वी एशियाई समृद्धि का एहसास तो कराया था परन्तु इसका विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। कालांतर में व्यापक स्तर पर हुए भौगोलिक खोजों तथा उससे प्राप्त उपलब्धियों ने यूरोप में आधुनिक युग का मार्ग प्रशस्त किया। मध्यकालीन यूरोपीय इतिहास का हम यदि अध्ययन करेंगे तो पायेंगे कि यह काल सामंती प्रवृतियों का काल था। इस काल में न तो व्यापार-वाणिज्य गतिशील था और न ही धर्म का स्वरूप उदार एवं मानवीय था। पृथ्वी के बारे में ज्ञान अत्यल्प एवं अंधविश्वास से युक्त था। सीमित भौगोलिक ज्ञान के कारण सामुद्रिक व्यापार भी सीमित था। मध्ययुगीन लोगों को विश्वास था कि पृथ्वी चपटी है एवं समुद्र में अधिकतम दूरी पर जाने पर पृथ्वी के किनारों से गिरकर अनन्त में विलीन हो जाने का भय बना रहता था। समुद्र यात्रा अत्यधिक कष्टपूर्ण एवं असाध्य थी। जहाज छोटे और असुरक्षित थे तथा गति एवं सुरक्षा के लिए हवा पर निर्भरता थी। कम्पास या कुतुबनुमा जैसे दिशासूचक यंत्र का ज्ञान अभी नहीं हुआ था। अतः दिग्भ्रमित होकर समुद्र में भटक जाने का भय भी बना रहता था। समुद्री यात्राओं के लिए राज्य की ओर से किसी प्रकार की सहायता नहीं दी जाती थी।, इस विषम परिस्थिति में नाविकों एवं व्यापारियों द्वारा अटलांटिक (अंधमहासागर) जैसे :⁠-महासागर की यात्रा करना अत्यंत दुष्कर था।

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