संथाल विद्रोह से आप क्या समझते हैं? 1857 के विद्रोह में उनकी क्या भूमिका थी?

Gyanendra Singh
0

 संथाल विद्रोह से आप क्या समझते हैं? 1857 के विद्रोह में उनकी क्या भूमिका थी?


उत्तर : भागलपुर से राजमहल के बीच का क्षेत्र, दामन-ए-कोह के नाम से जाना जाता था। यह संथाल बहुल क्षेत्र था। यहाँ 1855-57 के बीच विद्रोह हुआ था। इस विद्रोह के नेता सिद्धू और कान्हू थे। यह विद्रोह मुख्य रूप से महाजनों एवं व्यापारियों के खिलाफ उत्पन्न हुआ था। परन्तु बाद में यह गोरे काश्तकार, रेलवे इंजीनियर, स्थानीय अधिकारी एवं पुलिस के भी खिलाफ जन-आन्दोलन का रूप ले लिया।

                     30 जून, 1855 को लगभग दस हजार संथाल अपने अस्त्र-शस्त्र के साथ भागडीही में जमा हुए, जहाँ सिद्धू और कान्हू ने भगवान के इस वचन का एलान किया कि "संथाल अपने शोषकों के चंगुल से बाहर आएँ।" संथालों ने इस विद्रोह को "हराम पर भगवान की विजय का नाम दिया।" संथालों में यह मान्यता थी कि उनका भगवान हमेशा उनके साथ लड़ेगा। इस कारण उनके इस विद्रोह को उनका जातीय एवं नैतिक औचित्य भी प्राप्त हो गया। जुलाई, 1955 में स्त्री एवं पुरुषों के आह्वान पर संथालों का विद्रोह शुरू हो गया। बहुत जल्द ही 60 हजार हथियार बन्द संथालों को इकट्ठा कर लिया गया। इसके लिए हजारों हथियार बंद संथालों को तैयार रहने के लिए भी कहा गया। सशस्त्र विद्रोह का आरंभ दीसी नामक स्थान में अत्याचारी दारोगा महेश लाल की हत्या से आरंभ हुआ। सरकारी दफ्तरों, महाजनों के घर तथा अंग्रेजों की बस्तियों पर आक्रमण किया गया। अनेक अंग्रेज मार डाले गये। आदिवासियों के इस तरहं के संगठित विद्रोह से अंग्रेज डर गये और कलकत्ता तथा पूर्णिया से सेना बुलाकर कुचल डाले। कान्हू सहित 5000 से अधिक संथाल मार दिए गए। उपद्रवग्रस्त क्षेत्रों में मार्शल लॉ लागू किया गया। सिद्धू और अन्य नेता गिरफ्तार कर लिए गए। इस विद्रोह में संथालों ने अदम्य साहस का परिचय दिया, परन्तु फिर भी विद्रोह असफल हो गया। परन्तु आगे चलकर संथालों ने यह स्पष्ट घोषणा कर दी कि उन्होंने अंग्रेजों एवं उनके शासन के खिलाफ आन्दोलन किया है। जब 1857 की क्रांति की शुरुआत हुई तब ये संथाल विद्रोहियों के साथ और अंग्रेजों के खिलाफ उनका साथ दे रहे थे।

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)
Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !