डार्विन के विकास सिद्धांत की व्याख्या करें।
उत्तर-डार्विनवाद (Darwinism 1819-1882)- डार्विन के जैव विकास सिद्धान्त को प्राकृतिक वरण कहते हैं। उन्होंने "प्राकृतिक चयन (Natural selection) द्वारा जातियों का विकास" नामक पुस्तक 1869 में लिखी। यह अग्र तथ्यों पर आधारित है-
(i) जीवों में संतान उत्पत्ति की प्रचुर क्षमता
(ii) जीवन संघर्ष
(iii) प्राकृतिक वरण
(iv) योग्यतम की उत्तरजीविता
(v) वातावरण के प्रति अनुकूलन
(vi) नई जातियों की उत्पत्ति। डार्विन ने बताया कि सभी जीवों में जनन की प्रचुर क्षमता होती है परन्तु जीवों की संख्या सीमित रहती है। इसका कारण है उनमें जीवन संघर्ष। यह संघर्ष वातावरणीय अथवा अन्तरजातीय होता है। जीवों में लाभदायक् विभिन्नताएँ वंशागत होती हैं। योग्यतम लक्षणों वाले जीव स्वस्थ संतान उत्पन्न करके वंश चलाते हैं। प्रकृति योग्यतम जीवों का चयन करती है। इस प्रकार नई जातियों की उत्पत्ति होती है।

