पशुपालन के अध्ययन के किन-किन क्षेत्रों में सुधार लाया जा सकता है ?

Gyanendra Singh
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 उत्तर- पशुपालन के अध्ययन में निम्नलिखित क्षेत्रों में सुधार लाया जा सकता है-

(i) दुग्ध उत्पादन- दुधारू पशुओं की अत्यधिक संख्या होने के बावजूद हमारे देश में दूध का उत्पादन संतोषजनक नहीं है। हमारे देश में एक गाय औसतन करीब 200 kg दूध प्रति वर्ष देती है, जबकि यह औसत आस्ट्रेलिया और नीदरलैण्ड में 3500 kg तथा स्वीडन में 3000 kg प्रतिवर्ष है। अतः पशुपालन विज्ञान के अध्ययन से उन्नत नस्ल के अधिक दुधारू पशु प्रजनन के द्वारा प्राप्त किये जा सकते हैं। उनके रख-रखाव की उचित व्यवस्था की जा सकती है।

(ii) मांस उत्पादन- जनसंख्या के अनुरूप भोजन की बढ़ती आवश्यकता की पूर्ति के लिये अधिक पुष्ट, मांसल तथा जल्दी बढ़नेवाली नस्ल की मुर्गियाँ प्रजनन के द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। इसी प्रकार इच्छित गुण वाले, उन्नत नस्ल के भेड़, बकरी, सूअर आदि मांस-उत्पादक पशुओं को प्रजनन के द्वारा पशुविज्ञान के अध्ययन से प्राप्त किया जा सकता है। हमारे देश में प्रति व्यक्ति भोजन के रूप में मांस की वार्षिक खपत सिर्फ 131 g है जबकि अमेरिका में यह 1318kg है।

(iii) अण्डा उत्पादन - जनसंख्या के अनुरूप हमारे देश में अण्डे की खपत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। बढ़ते माँगों की पूर्ति के लिये अण्डा देनेवाली उन्नत किस्म की मुर्गियाँ प्रजनन के द्वारा प्राप्त की जाती हैं। हमारे देश में भोजन के रूप में अण्डे की प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत मात्रा 6 है जबकि अमेरिका में यह 295 है।

(iv) मछली उत्पादन– हमारे देश में मृदु जल की मछलियों के उत्पादन बढ़ाने की संभावना बहुत अधिक है। इस विज्ञान के अध्ययन से अण्डे से बच्चे का सफल निष्कासन, मछलियों के आकार में समुचित वृद्धि, उनका उचित रख-रखाव, रोगों से बचाव आदि संबंधित बातें सीखी जा सकती हैं।

(v) पशुओं के मल-मूत्र का समुचित उपयोग- हमारे देश में गोबर का उपयोग सामान्यतः जलावन के रूप में किया जाता है। पशुओं के मल-मूत्र से बायोगैस का उत्पादन हो सकता है। इनका उपयोग खाद के रूप में भी किया जा सकता है।

(vi) कार्य-क्षमता में बढ़ोतरी-पश्चिमी देशों की अपेक्षा हमारे देश के पालतू पशुओं  कार्य करने की क्षमता बहुत कम है। पशुपालन के सिद्धांतों का सही अनुपालन कर ऐसे पालतू पशुओं की कार्यक्षमता बढ़ायी जा सकती है।

(vii) कुन उत्पादन- अन्य ऊन उत्पादक देशों की तुलना में हमारा देश बहुत पीछे है। पशुपालन के सिद्धांतों और तकनीक का इस्तेमाल कर ऊन-उत्पादक भेड़ों, अंगोरा किस्म के खरगोश की नस्ल सुधार कर ऊन का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।

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