उत्तर- हृदय शरीर के सभी भागों से अशुद्ध रक्त को ग्रहण करता है। वह उस अशुद्ध रक्त को ऑक्सीजन के द्वारा शुद्ध करने के लिए फेफड़े में भेजता है। हृदय पुनः उस शुद्ध रक्त को फेफड़े से ग्रहण करता है और शरीर के विभिन्न भागों में पम्प कर देता है जिससे सम्पूर्ण शरीर में रक्त का परिसंचरण होता है। यह कार्य हृदय की पेशीय भित्ति के संकुचन के द्वारा संपन्न होता है। हृदय के वेश्मों-अलिंद और निलय में बारी-बारी से संकुचन तथा शिथिलन होता है। हृदय के वेश्मों का संकुचन सिस्टाल तथा शिथिलन डायस्टॉल कहलाता है। शरीर के विभिन्न भागों से अशुद्ध रक्त दो अग्र महाशिराओं एवं एक पश्च महाशिरा के द्वारा दायें अलिंद में पहुँचता है। फेफड़ों से शुद्ध रक्त फुफ्फुस शिराओं के द्वारा बायें अलिंद में पहुँचता है। इसके बाद दोनों अलिंदों में संकुचन तथा साथ-साथ दोनों निलय में शिथिलन होता है। फलतः अशुद्ध रक्त दायें अलिंद में दायाँ अलिंद निलय छिद्र के द्वारा दायें निलय में तथा शुद्ध रक्त बायें अलिंद से बायें अलिंद निलय छिद्रों के द्वारा बायें निलय में पहुँच जाता है। जब दोनों अलिंद खाली हो जाते हैं तथा दोनों निलय रक्त से भर जाते हैं तब निलयों में संकुचन तथा अलिंदों में संकुचन होता है। इस समय दायाँ अलिंद-निलय छिद्र द्विदली कपाट के द्वारा बंद हो जाते हैं। इसके फलस्वरूप दायें निलय से अशुद्ध रक्त फुफ्फुस धमनियों द्वारा फेफड़े में चला जाता है। जहाँ गैसीय आदान-प्रदान के द्वारा शुद्ध होता है, इसी समय बायें निलय में पहुँचा शुद्ध रक्त महाधमनी में पहुँचता है और फिर वहाँ से विभिन्न धमनियों के द्वारा शरीर के सभी भागों में संचारित होता है। इस प्रकार हृदय अपना कार्य सम्पन्न करता है।

