एक प्रयोग द्वारा दर्शाएँ कि प्रकाशसंश्लेषण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है।
प्रयोग-एक क्रोटन या कोलियस की चित्तीदार पत्ती को तोड़ें। उसकी हरी और सफेद चित्तियों को रेखांकित करें। इस पत्ती को बीकर में रखे पानी में डालकर कुछ देर उबालें और उबालने के पश्चात् उसे गर्म ऐल्कोहॉल या स्प्रिट में डाल दें। अब इस ऐल्कोहॉल वाले बीकर को वाटर बाथ में रखकर उबालें (थोड़ी देर में आप देखेंगे कि स्प्रिट हरे रंग का होता जा रहा है) क्योंकि पत्ती में मौजूद हरा वर्णक क्लोरोफिल पत्ती से निकलकर धीरे-धीरे ऐल्कोहॉल में घुल जाता है। जब पत्ती रंगहीन, अर्थात हल्के पीले रंग या सफेद हो जाएं तो बीकर को ठंडा होने के लिए छोड़ दें। ठंडा होने के बाद पत्ती को पानी में अच्छी तरह धो डालें। इसके बाद इस पत्ती को पेट्रीडिश में रखकर उसपर आयोडीन की कुछ बूंदें डालें। आप पाएँगे कि पत्ती का हरी चित्तियोंवाला भाग गाढ़ा नीला रंग का हो जाता है, परंतु पत्ती का सफेद चित्तियोंवाला भाग नीला नहीं होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि सफेद भाग पर आयोडीन का कोई असर नहीं हुआ। ऐसा क्यों हुआ? हरी चित्तियोंवाले भाग में चूँकि क्लोरोफिल मौजूद था, इसीलिए उस हिस्से में प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया हुई, जिससे उसमें मंड का निर्माण भी हुआ, परंतु पत्ती के सफेद चित्तियोंवाले भाग में क्लोरोफिल अनुपस्थित होता है, इसलिए उस भाग में न तो प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया हुई और न ही मंड या स्टार्च का निर्माण हुआ। इससे यह साबित होता है कि बिना क्लोरोफिल के प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया संपन्न नहीं हो सकती।


